राजपुताना की सहायक और अधीनस्थ संधियाँ । ब्रिटिश कूटनीति का विश्लेषण
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भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु विभिन्न रणनीतियाँ अपनाईं। राजपुताना क्षेत्र में कंपनी ने दो प्रमुख कूटनीतिक हथियारों का प्रयोग किया – सहायक संधि (Subsidiary Alliance) और अधीनस्थ संधि (Paramountcy Treaty)। इस लेख में हम इन दोनों संधियों के माध्यम से राजपुताना की रियासतों पर ब्रिटिश प्रभाव के विस्तार को समझेंगे।
सहायक संधि (Subsidiary Alliance)
- लागू करने वाला: लॉर्ड वैलेजली (1798)
- उद्देश्य: राजपुताना की रियासतों में ब्रिटिश प्रभाव और स्थायी सैन्य उपस्थिति
- प्रमुख अधिकारी: लॉर्ड लेक
- प्रथम सहायक संधि: भरतपुर (राजा रणजीत सिंह) – 29 सितंबर 1803
- रक्षात्मक और आक्रामक संधि: अलवर (राजा बख्तावर सिंह) – 14 नवंबर 1803
- अन्य रियासतें: धौलपुर (राजा कीरत/कीर्ति सिंह), मारवाड़ (राजा मान सिंह)
महत्वपूर्ण: अलवर, भरतपुर और धौलपुर को सहायक संधि के तहत पूर्णतः नियंत्रित किया गया, अतः इनके साथ अधीनस्थ संधि नहीं हुई।
अधीनस्थ संधि (Paramountcy Treaty)
- लागू करने वाला: लॉर्ड हेस्टिंग्स
- उद्देश्य: राजपुताना पर पूर्ण ब्रिटिश नियंत्रण
- प्रमुख अधिकारी: चार्ल्स मैटकॉफ (सहायता - कर्नल जेम्स टॉड)
- प्रथम अधीनस्थ संधि: करौली (राजा हरवक्षपाल सिंह) – 09 नवंबर 1817
- अंतिम अधीनस्थ संधि: सिरोही (राजा शिव सिंह) – 11 सितंबर 1823
- विस्तृत संधि: कोटा (राजा उम्मेद सिंह) – 26 दिसंबर 1817
- आत्मप्रेरित संधि: जैसलमेर (राजा मूलराज द्वितीय) – 12 दिसंबर 1818
- वागड़ क्षेत्र: झालावाड़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर – संधियाँ की: जॉन मेलकम द्वारा
राजपुताना में रेजिडेंसी और प्रशासनिक नियंत्रण
- 1818 से 1832 तक – नियंत्रण दिल्ली रेजिडेंट के पास
- राजपुताना का पहला रेजिडेंट – सर डेविड ऑक्टर्लोनी
- 1832 – लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा अजमेर में राजस्थान रेजिडेंसी की स्थापना
- AGG (Agent to the Governor General) पद का सृजन
- पहला AGG – मिस्टर अब्राहम लॉकेट
- 1845 – माउंट आबू को रेजिडेंसी बनाया गया
गोद निषेध नीति (Doctrine of Lapse)
- लागू: लॉर्ड डलहौजी
- हड़पा गया क्षेत्र: ब्यावर
- हड़पी गई रियासत: करौली (लेकिन बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने अनुमति नहीं दी)
निष्कर्ष
राजपुताना की रियासतों पर ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण सैन्य शक्ति से अधिक कूटनीति और संधियों के माध्यम से स्थापित हुआ। सहायक और अधीनस्थ संधियाँ, ब्रिटिश साम्राज्य की रणनीतिक चतुराई का परिचायक हैं। इन्होंने भविष्य के स्वतंत्रता संघर्ष की नींव रखी।
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